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यदि यही है / रणजीत
Kavita Kosh से
यदि यही है फैसला अंतिम तुम्हारा
तो समेटो घने केशों की घनेरी छाँह
कंधे से उठा लो बाँह
बहुत लंबी
बहुत-सी संभावनाओं से भरी है ज़िंदगी की राह
बहुत से राही भटकते हैं यहाँ पर
ढूँढते हमराह
करते साथ का आह्वान
उनमें से कई के
कंठ में होगा बसा वह
चेतना की इन अगम गहराइयों को झनझनाता गान
ऐसे भी बहुत होंगे
कि जिनको सीपिया पलकों-ढँकी
भोली शरारत से भरी आँखों से अपनी
मुस्कुराना बहुत भाता हो
बहुत संभव है कि उनमें से किसी को
बातें बनाना भी
तुम्हारी तरह आता हो
यदि यही है फैसला अंतिम तुम्हारा!