भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यदि सचमुच / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
हाँ, जानता हूँ
तुम दया कर देते
और मैं अमर हो जाता
पर मैंने ज़ोर दिया अपने होने पर
और अब मैं नही रहूँगा
लेकिन सोचो तो ज़रा
कि अपने साथ तुम ने क्या किया है
तुम-जो ईश्वर थे करूण-
निर्मम और डरावनी मृत्यु बन कर
रह गये हो !
तब भी क्या मुझ को
मार सकोगे तुम
यदि सचमुच
तुम से ही बना हूँ मैं ?
(1985)