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यम के द्वार पर / कुमार रवींद्र

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यम के द्वार पर नचिकेता का प्रश्न -
मैं कौन हूँ
आज भी जीवित है ।
शरीर का पिता कोई भी हो
आत्मा का पिता कौन है
इसका उत्तर केवल मृत्यु के पास है -
मृत्यु का पथ ही जीवन का भी पथ है |
साँस जब तक मृत्यु के तट पर खड़ी नहीं होती
और जीवन के वरदानों से ऊपर नहीं उठती
तब तक
अपने को जानना संभव नहीं होता ।
 
हम किस उम्र में नचिकेता होते हैं
यह महत्त्वपूर्ण है
( वैसे मृत्यु की तलाश में हे साँस होती है
और यह कहना कठिन है
कौन-सी साँस उसे पा लेगी )
क्योंकि जिज्ञासा उम्र से नहीं
समय से होती है ।
जो साँस नचिकेता होती है
वह अछूती ही होती है
फिर भी उम्र ही निश्चित करती है
कि यम का उत्तर बूझने के लिए
हमारे पास कितना समय है -
वरना जिज्ञासा का कोई अर्थ नहीं होता ।