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यहाँ की दुनिया / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
बच्चा अभी-अभी स्कूल से लौटा है
खड़ा है किनारे पर
चेहरे पर भूख की रेखाएँ
और बाहों में माँ के लिए तड़प ।
माँ आ रही हैं झील के उस पार से
अपनी निजी नाव खेती हुई
चप्पू हिलाता है नाव को
हर पल वह दो क़दम आगे बढ़ रही
बच्चा सामने है
दोनों की आँखें जुड़ी हुई
ख़ुशी से हिलती है झील
हवा सरकती है धीरे-धीरे
किसी ने किसी को पुकारा नहीं
वे दोनों निकल चले आए ठीक समय पर
यही है यहाँ की दुनिया ।