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यहाँ कुछ रहा हो / शमशेर बहादुर सिंह

यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ
उन्होंने बुलाया है क्या ले के जाएँ

कुछ आपस में जैसे बदल-सी गई हैं
हमारी दुआएँ तुम्हारी बलाएँ

तुम एक ख़ाब थे जिसमें ख़ुद खो गए हम
तुम्हें याद आएँ तो क्या याद आएँ

वो एक बात जो ज़िन्दगी बन गई है
जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ

वो ख़ामोशियाँ जिनमें तुम हो न हम हैं
मगर हैं हमारी तुम्हारी सदाएँ

बहुत नाम हैं एक 'शमशेर' भी है
किसे पूछते हो किसे हम बताएँ


रचनाकाल :1945