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यहाँ तो कुण्डली मारे लोग बैठे हैं / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
यहाँ तो कुण्डली मारे लोग बैठे हैं।
जाने किस डर के मारे लोग बैठे हैं।
चौपाल का अलाव भी अब तक नहीं जला
हुआ क्या है? मौन सारे लोग बैठे हैं।
कोई तो पहल करे कि सन्नाटा टूटे
शायद यही सोच सारे लोग बैठे हैं।
हमने कहा 'सूरज उगा, तुम भी तो जगो'
किन्तु! अनमने मन-मारे लोग बैठे हैं।