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यहाँ तो ख़ामुशी पहले से तय है / विनय मिश्र
Kavita Kosh से
यहाँ तो ख़ामुशी पहले से तय है ।
ये जंगल का थका हारा समय है ।
प्रजा है रात-दिन उसकी नज़र में,
मगर उच्चारणों में अपनी जय है ।
जिधर देखो, बगूले उठ रहे हैं,
ये कैसा तंत्र है, मत है, अनय है ।
यही कहते हैं प्रश्नों के उजाले,
अंधेरो, अब तुम्हारी हार तय है ।
ये रण भी जीत ले तू, छल-कपट से,
सियासत ये तेरी अन्तिम विजय है ।
सभी संवेदनाएँ हैं सुरक्षित,
अगरचे ये मेरा टूटा हृदय है ।
सुवासित आँसुओं में प्रात जागा,
सुहाना दर्द है, बहता मलय है ।