भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ तो ख़ामुशी पहले से तय है / विनय मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ तो ख़ामुशी पहले से तय है ।
ये जंगल का थका हारा समय है ।
 
प्रजा है रात-दिन उसकी नज़र में,
मगर उच्चारणों में अपनी जय है ।
 
जिधर देखो, बगूले उठ रहे हैं,
ये कैसा तंत्र है, मत है, अनय है ।
 
यही कहते हैं प्रश्नों के उजाले,
अंधेरो, अब तुम्हारी हार तय है ।
 
ये रण भी जीत ले तू, छल-कपट से,
सियासत ये तेरी अन्तिम विजय है ।
 
सभी संवेदनाएँ हैं सुरक्षित,
अगरचे ये मेरा टूटा हृदय है ।
 
सुवासित आँसुओं में प्रात जागा,
सुहाना दर्द है, बहता मलय है ।