भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यहाँ तो दर्द की बहती हवा का मौसम है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यहाँ तो दर्द की बहती हवा का मौसम है
न कहो कुछ कि ये रब की रज़ा का मौसम है
हवाएँ लेने नहीं देतीं साँस भी खुल कर
बड़ी जहरीली घुटन की फ़िज़ा का मौसम है
बहार बन के चले आओ जिंदगी में मेरी
बहुत दिनों से यहाँ पर खिज़ा का मौसम है
हैं सोचते कि मुआफ़ी मिले गुनाहों की
मगर यहाँ पे तो खाली सज़ा का मौसम है
किये फ़रियाद हैं जाते कोई सुने न सुने
हमारे दिल में महज़ इल्तिज़ा का मौसम है
भटक रही है यहाँ रूह रेगजारों में
तुम्हारे वास्ते उमड़ी घटा का मौसम है
न आँसुओं की नदी बांध बंधाये रुकती
मिले हैं दर्द न कोई दवा का मौसम है