भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यहाँ दिल्ली में / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छायी दीवाली बहार यहाँ दिल्ली में
गिफ्टों के ऊँचे पहाड़ यहाँ दिल्ली में
रिश्वत के मीना-बाजार यहाँ दिल्ली में
पूँजी की माया अपार यहाँ दिल्ली में

वैसे तो अपनी सरकार यहाँ दिल्ली में
लेकिन ये किसका दरबार यहाँ दिल्ली में
कहने को लिखने की सबको आजादी
लेकिन ये किसके अखबार यहाँ दिल्ली में

राशन की लाइन किरासिन की लाइन
खड़े-खड़े टूट गये हाड़ यहाँ दिल्ली में
घास फूस तिनकों से झुग्गी बनायी
झुग्गी को चर गये सांड़ यहाँ दिल्ली में

हिम्मत तुम्हारी कि कविता लिखोगे!
यह क्या बुढ़ापे में पिंगल पढ़ोगे!
कविता के परिसर में पहरा है गहरा
और खिंची बिजली की बाड़ यहाँ दिल्ली में

हवा और पानी में अर्थ और वाणी में
भरा हुआ जहर धुआँधार यहाँ दिल्ली में
साहब जी खाते हैं मखमल ही मखमल
करते हैं लेकिन अंगार यहाँ दिल्ली में

राहु केतु सबको नमस्कार यहाँ दिल्ली में
जिन्दा है यही चमत्कार यहाँ दिल्ली में
इस सबके बावजूद अब भी बहती यमुना
और हुआ दिल्ली से प्यार मुझे दिल्ली में।