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यहाँ नातवाँ मन है / संजय चतुर्वेद
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व्यंग्य शब्द विद्रोह मनन है,
घुमड़ै धुआँ हवा से पूछै मेरा कहाँ वतन है
कोई कहीं आवाज़ दे रहा तिर्यक ताप जलन है
बियाबान निर्वेद पुकारै यहाँ नातवाँ मन है
निर्गुन कितै बिसँगत बूझै सगुन बिराट सघन है
सुरत-निरत अटपट विचार सब परेशान जीवन है
धुक-धुक चक्की चलै जगत की कुण्ठा-तप ईंधन है ।