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यहाँ पर और वहाँ चारों चफेरे / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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यहाँ पर और वहाँ चारों चफेरे
हमें घेरे हुए डाकू लुटेरे
ज़हर घोला गया वो मौसमों में
अँधेरे हो गये यारो सवेरे
वो भूखे पेट ही सोता है गर्चे
निकलता काम पर है मुँह अँधेरे
उन्हीं लोगों से धोखे खा रहा हूँ
मुझे लगते रहे जो लोग मेरे
ज़माना उसके आगे बढ़ के देखे
जहाँ रुक जाएँ हाथ और पाँव तेरे
समुन्दर की तरफ़ देखा है जब भी
नज़र आए मेछेरे ही मेछेरे