यहाँ लगता जैसे हुआ कुछ नहीं है।
अभी के समय से बुरा कुछ नहीं है।
तसल्ली रखेंगे भला कब तलक हम
हमें हक़ ही दे दो, दुआ कुछ नहीं है।
अभी तक किसानी में देखा है हमने
कि खेती से बढ़कर जुआ कुछ नहीं है।
रुधिर, माँस, हड्डी से हम सब बने हैं
किसी में भी यारो जुदा कुछ नहीं है
जिन्हें सौंप दी हमने बच्चों को, उनमें
पढ़ाने का ही तर्जुबा कुछ नहीं है।