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यहाँ शहर में / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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कौन माँगता
यहाँ रोशनी
सिरा धार में अँधियारा ।
मेरे भाई
यहाँ शहर में
दम तोड़ता है उजियारा ।
ऊपर से
लगते हैं माना
ये जाने-
पहचाने चेहरे,
बातों में
मिसरी घोलेंगे
सबको लगें
लुभाने चेहरे
पर इनके
मन की पोथी का
हर अक्षर है हत्यारा ।
आँखों में था
लाज का पानी
वह भी तो
बेमौत मरा है,
आँगन-आँगन
कपट-कथा है
मन्त्र-पाठ यहाँ
गरल-भरा है
विश्वासों के
सर्प छुपे है
बाँबी है हर गलियारा ।
-0-(18-9-1990:अमृत सन्देश-12-2-95)