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यहाँ से देखो / देवयानी
Kavita Kosh से
आसमान कितना नीला है
घास कितनी हरी
कितना चटख है फूलों का रंग
कितना साफ़ दिख रहा है
तालाब का पानी
हवा में घुली है
कैसी भीनी गन्ध
नहीं, बन्द मत करो
खिड़की के पल्ले
यूँ ही रहने दो उन्हें
आधा खुला
झूलता हवा में