यहां सात पर्दों में हर शै छुपी है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
यहां सात पर्दों में हर शै छुपी है ,
किसे फिर ख़बर क्या ग़लत क्या सही है !
यहां मौत तक भी पहुंचना है मुश्किल ,
कि उलझी हुई इस कदर ज़िन्दगी है !
कही बात सुन ली तो क्या तीर मारा ,
सुनो सुन सको तो कि जो अनकही है !
बताऊं मगर क्या कि क्या चीज़ दुनिया ,
समझ जो न आए समझ लो वही है !
जो है चीज़ कोई तो बस वहम है वो ,
वही दोस्ती है वही दुशमनी है !
सुनो ज़िन्दगी कम करो शोर अपना ,
कि देखो मुझे नींद सी आ रही है !