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यहीं कहीं / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
Kavita Kosh से
यहीं कहीं से चला था बचपन
जीवन सघन हुआ था यहीं कही
यहीं कहीं हम व्यथित हुए थे समय से
कुसमय घिरे थे परिस्थितियों से यहीं कहीं
यहीं कहीं हुआ था परिचय लोगों से
लोग हुए थे आत्मीय हमसे यहीं कहीं
यहीं कहीं झगड़े थे हमसे लोग उलझकर
अलग हुआ था फिर लोगों से मैं यहीं कहीं
यहीं कहीं खोजा था ठिकाना निवास का
प्रवास पाया था जीवन में पहली बार यहीं कहीं
यहीं कहीं रोजी-रोटी में उलझा था मन कभी
कभी हुआ लोगों की नज़रों में अभिजन यहीं कहीं
यहीं कहीं खोया है मेरा अतीत आज
वर्तमान उलझा हुआ है मेरा आज यहीं कहीं
यहीं कहीं तलाश जारी है भविष्य की
व्यस्त है जीवन इन दिनों बहुत यहीं कहीं ॥