यही ज़िन्दगी की सच्चाई / शकुंतला कालरा

यही ज़िन्दगी की सच्चाई,
पग-पग पर है नई लड़ाई।

नहीं जीत पर तुम इतराना,
कभी हार से न घबराना।
सब उतार-चढ़ाव है भाई,
यही ज़िन्दगी की सच्चाई।

बाहर से ना कोई हारा,
जो भी हारा मन से हारा।
मन जीता, जग जीता भाई,
यही ज़िन्दगी की सच्चाई।

चलते-फिरते, लड़ते-भिड़ते,
नीचे गिरते, ऊपर उठते।
सबने अपनी राह बनाई,
यही ज़िन्दगी की सच्चाई।

यहाँ नहीं हैं घुप्प अँधेरे,
संग रोशनी के भी घेरे।
तम में किरणें हैं मुस्काई,
यही ज़िन्दगी की सच्चाई।

नहीं मरुस्थल ही तपता,
शीतल जल का झरना बहता।
धूप-छाँव की सृष्टि रचाई,
यही ज़िन्दगी की सच्चाई।

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