भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यही तज़ाद तो हैरान करने वाला है / हनीफ़ राही
Kavita Kosh से
यही तज़ाद तो हैरान करने वाला है
कहाँ चराग़ रखा है कहाँ उजाला है
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ इस वास्ते नशे में हूँ
मुझे बताओ हरम है कि ये शिवाला है
रईसे शह्र का ये आलिशान बंगला भी
किसी ग़रीब से छीना हुआ निवाला है
अमीर लोगों से महफूज़ रख मेरे मालिक
फिर एक ग़रीब की बेटी ने क़द निकाला है
उन्हीं के सर पे न गिर जाऊँ आसमाँ बनकर
सितमगरों ने मेरा नाम तो उछाला है
हैं इन्तज़ार में तारे भी चाँद भी वो भी
सुना है रात में सूरज निकलने वाला है
हवा की राह में जलता चराग़ है "राही"
वो क्या बुझेगा जिसे रौशनी ने पाला है