भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यही दर्पण / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
जब देखो
दर्पण में अपनी आँख
दिखती है -
खुद को हटा लूँ
तो यही दर्पण
सभी कुछ हो जायेगा
(1983)