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यही बच रही / रघुवीर सहाय

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दिन यदि चले गए वैभव के
तृष्णा के तो नहीं गए
साधन सुख के गए हमारे
रचना के तो नहीं गए

जो कुछ झेला था इस तन पर
वह इस मन को दे डाला
फिर भी बहुत बची है
चुम्बन में जीवन की मधु-ज्वाला

वही बच रही कोपल
आँधी ने जब टहनी दी झकझोर
भूसी का कबिरा क्या करता
तत्त्व तत्त्व रख लिया पछोर ।