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यही वो नन्दीग्राम है / अविनाश
Kavita Kosh से
सूखे चेहरे
शव क्षत-विक्षत
सीना ताने
वाम है
बुद्धदेब के बुद्धिजीवी, यही वो नन्दीग्राम है !
सड़कों पर सन्नाटा तैर रहा है पूरे गाँव में
बचे हुए बच्चे भूखे हैं नील गगन की छाँव में
गुज़री सुबह
ओसारे की
सूखी मिट्टी पर
शाम है
बुद्धदेब के बुद्धिजीवी, यही वो नन्दीग्राम है !
कौल दिया है काडर को सब ठीक-ठाक है लगे रहो
प्रतिरोधी आवाज़ दबोचो रात-रात भर जगे रहो
सड़कों पर
सैलाब बना
नागर समाज
सब झाम है
बुद्धदेब के बुद्धिजीवी, यही वो नन्दीग्राम है !
नोबल प्राइज़ विजेता कह दें बुद्धदेब की लाइन सही
फिर भी हम मानेंगे इसको बुद्धिविलासी बात कही
मॉल-सिरी
सिंगूर बाग़ में
झुलसा
ख़ासो आम है
बुद्धदेब के बुद्धिजीवी, यही वो नन्दीग्राम है !