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यही शाख़ तुम जिसके नीचे चश्म-ए-नम हो / अख़्तर-उल-ईमान
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यही शाख़ तुम जिसके नीचे चश्म-ए-नम हो
अब से कुछ साल पहले
मुझे एक छोटी बच्ची मिली थी
जिसे मैंने आग़ोश में
ले कर पूछा था, बेटी
यहां क्यूं खड़ी रो रही हो
मुझे अपने बोसीदा आंचल में
फूलों के गहने दिखा कर
वह कहने लगी
मेरा साथी, उधर
उसने अपनी उंगली उठा कर बताया
उधर, उस तरफ़ ही
जिधर ऊंचे महलों के गुंबद
मिलों की सियाह चिमनियां
आसमां की तरफ़ सर उठाए खड़ी हैं
यह कह कर गया है कि, मैं
सोने चांदी के गहने तेरे
वास्ते लेने जाता हूं, रामी