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यही ही नहीं / कुमार रवींद्र
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यही ही नहीं
और भी बहुत कुछ है इस घर में
गूँज आरती की अम्मा की
किस्से हैं दादी-नानी के
पूजा-पाठ बड़े बाबा के
चर्चे संतों की बानी के
याद पुरानी -
हमने पहली मछली देखी थी पोखर में
बदके भइया की शादी में
पहली बार सुनी शहनाई
बड़ी बुआ ने कभी न आने की
हाँ, कसम तभी थी खाई
कहा-सुनी थी हुई
उसी दिन बाबूजी की भी दफ्तर में
आते थे मेहमान यहाँ जो
उनकी भी यादें हैं इसमें
बसी हुईं हैं यहीं प्यार की
किसिम-किसिम की पिछली रस्में
पिछले कई
पुराने रिश्ते मिले यहीं थे कल दुपहर में