यही हैं आप / संजीव कुमार
गर्वित देशभक्त
अनुशासित नागरिक
विश्वसनीय चर
प्रेमपूर्ण परिजन
सहृदय मित्र
सुख बांटता हुआ अस्तित्व
भार उठाती हुई आत्मा।
अपराध से असम्बद्ध
राजनीति से असंलग्न
तटस्थ बहसबाजी से
टीका टिप्पणी से परे
उदासीन घृणा और द्वेष से,
पार करते हुए
सुख दुख की छोटी बाधाओं को,
किंचित झिझक भरे हाथों से
सहलाते हुए
लोभ मोह हर्ष विषाद के
स्पंदनशील रूपाकारों को।
थोड़ा बहुत आनंद लेते हुए
हत्याओं, आगजनी, लूट,
निर्जीव वक्तव्यों और
ढीठ चेहरों का,
गर्म चाय के साथ घूंट भरते हुए
स्वाद लेते हुए सभी का,
बासी खबरों पर
रखते हुए ताजा विचार,
बड़ी समस्याओं के छोटे हल
बांटते हुए मित्रों से
कमाते और संचय करते हुए
जोड़ते और घटाते हुए
बलपूर्वक अनदेखा करते हुए
आंख में चुभने वाली
आपदाओं को, दुर्घटनाओं को।
दोहराते हुए चिर परिचित कथन
थामते हुए अपरिचित हाथ जब तब,
गुजरते समय के
गुजरने का अफसोस करते हुए
वहन करते हुए,
बच्चों के बढ़ने का सुख
स्वयं के बीतने का दुख
पत्रों, प्रपत्रों के बढ़ते संग्रह को
सहेजते हुए,
दोहराते हुए
मीठी यादों, सुखद अनुभवों को,
रखते हुए
जीवितों के प्रति किंचित लापरवाही,
मृतकों के प्रति असीम वेदना
हिलाते डुलाते
स्वयं को विलीन करते हुए
देश काल के अंतराल भरने वाली
सर्वव्यापी सर्वग्रासी अतिचारी अग्रगामी
नागरिक सभ्यता में
यत्किंचित आत्मतोष के साथ,
यही हैं आप।