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यही है क्या प्यार / नंदकिशोर आचार्य

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कितना असहाय था मैं
अन्देशों से घिरा, काँपता हुआ प्रतिपल
जब सब कुछ सुरक्षित था
और हवाएँ हर तरह अनुकूल।

अब सभी कुछ घनघोर झँझावत में है-
मैं कितना बेफिक्र !

यही है क्या प्यार
समुद्री तूफानों के बीच
लहरों पर उछलती
एक टूटी नाव पर
बेफिक्र करती हुई
स्मृति यह ?

(1987)