यही है जग की रीत पपीहे / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
यही है जग की रीत पपीहे
कौन किसी का मीत पपीहे
किस की ख़ातिर तू गाता है
ये मन मोहक गीत पपीहे
इस जंगल में कौन सुने गा
तेरा ये संगीत पपीहे
सुब्ह सवेरे छेड़ न देना
कोई विरह का गीत पपीहे
दुन्या में बस दो ही गायक
इक तू इक 'जगजीत` पपीहे
किस को बुलाता है तू निस दिन
कौन है तेरा मीत पपीहे
पी को पुकारे, पी को ढूंडे
तेरा इक इक गीत पपीहे
सब को गाना है दुन्या में
अपना अपना गीत पपीहे
कितनी सदियों से जारी है
तेरा ये संगीत पपीहे
मिल जायेगा इक दिन तुझ को
तेरा बिछड़ा मीत पपीहे
ख़त्म न होगा तेरा गाना
जायेंगे युग बीत पपीहे
गाता जा तू सांझ सवेरे
तेरी होगी जीत पपीहे
तेरी हस्ती, तेरा जीवन
एक निरंतर गीत पपीहे
'पी` की लगन में गाते जाना
होना मत भयभीत पपीहे
मिल के पुकारें पी को हम तुम
मिल कर गायें गीत पपीहे