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यह अकाल इन्द्रधनुष / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
चलो चलें हो लें, धन खरियों के देश
धान परियों के देश ।
आगे-आगे पछुवा
पीछे पुरवाई,
बादल दो बहनों के
बीच एक भाई,
बरखा के वन, तड़ित-मछरियों के देश
जल लहरियों के देश ।
घिर आया धरती का
रंग आसमानी,
गेहुवन-सा ठनक रहा
सरिता का पानी,
पानी पर लोटती गगरियों के देश
जल-गगरियों के देश ।
धूप-पत्र डाल गया
दिन का हरकारा,
यह अकाल इन्द्रधनुष
आगमन तुम्हारा,
आम के बहाने मंजरियों के देश
गिलहरियों के देश ।