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यह अपनापन है मेरे किस काम का / रंजना वर्मा

यह अपनापन है मेरे किस काम का।
प्यार न दो मुझको गैरों के नाम का॥

गमन नहीं संभव जग में जिस पन्थ पर
पता पूछते हो क्यों ऐसे धाम का॥

मार्ग कंटकाकीर्ण भटकना जीवन भर
मिले एक पल कभी कहीं विश्राम का॥

जब तक शक्ति रहे पाँवों में चले चलें
भला सोचना क्या आगत परिणाम का॥

बड़े यत्न से घाव हृदय के सिले मगर
दर्द मिला साँसों को आठो याम का॥