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यह उत्सव / सुधीर मोता
Kavita Kosh से
यह रंगों का जीवन
जीवन का यह त्यौहार
यह उत्सव इस बरस भी आया
याद दिलाने फिर इस बार
तह पर जैसे तहें जमीं
परतों पर हो परत जमीं
उन यादों पर जम जायेगी
इस पल की भी याद अभी
फिर खुरचेंगे बरस बैठ कर
वह हलवे का थाल बड़ा
उसी याद की पुस्तक पढ़
बीतेगा यह साल बड़ा
जैसे पिछले बीते थे
वैसे ही अब यह आया
न होती जो यह होली
पता न चलता यह आया
रंग दंग हुड़दंग संग
नित मस्ती में बीते साल
फिर उमंग की बही शुरु
यह बड़े लाभ का कारोबार।