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यह एक कल्पना है / अज्ञेय

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 यह एक कल्पना है किन्तु इस काल्पनिक सिद्धान्त की पुष्टि जीवन की अनेक घटनाएँ करती हैं।
विधाता ने प्रेम-रज्जु में एक विचित्र गाँठ लगा रखी है- जो सदा अटकी रहती है। चिरकाल के प्रेमियों में भी एक स्वभाव-वैषम्य रहता है- जिसे दोनों समझ कर भी दूर नहीं कर सकते। यही उन के प्रणय की दृढ़ता और उस की कम जोरी है।
यह उन्हें जन्म-जन्मान्तर से एक-दूसरे की ओर आकर्षित करता है पर कैवल्य नहीं प्राप्त करने देता। जब वे एक-दूसरे के अत्यन्त समीप आ जाते हैं तब वह प्रकट हो कर उन्हें फिर विलग कर देता है, और आकर्षण की क्रिया पुन: आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार सान्निध्य और दूरत्व में, मिलन और विच्छेद में, जन्म के बाद जन्म, युग के बाद युग, कल्प के बाद कल्प बीत जाते हैं। और एक चिरन्तन, नित्य तृष्णा की तरह दोनों आत्माएँ एक-दूसरे की चाह में छटपटाती रहती हैं, और प्रेम के ज्वालामय अमृत का, विषाक्त शान्ति का, पान करती रहती हैं...
परमाणु के केन्द्रक के आस-पास इलेक्ट्रान की परिक्रमा से ले कर विश्वकर्मा की सर्वोत्कृष्ट कृति मानव हृदय की क्रियाओं तक में यही तथ्य निहित है...

दिल्ली जेल, 17 जुलाई, 1932