भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह कब पता चला / शिवराम
Kavita Kosh से
तेरे दिल में जहर भरा है
यह कब पता चला
मेरे दिल का घाव भरा है
यह कब पता चला
पानी नहीं बचा आंखों में
यह कब पता चला
थोथा जीवन बचा जगत में
यह कब पता चला
दरिया नहीं है दलदल है ये
यह कब पता चला
लाल नहीं वह नीला रंग है
यह कब पता चला
गली प्रेम की बहुत तंग है
यह कब पता चला
प्रेम नहीं यह दीर्घ जंग है
यह कब पता चला
इंतज़ार किसका पल-पल है
यह कब पता चला
मैं भी संग हूँ कहा था किसने
यह कब पता चला