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यह कमाल की जिंदगी / त्रिभवन कौल

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यह जिंदगी भी कमाल की जिंदगी है!
खुद ही अपने जीवन से त्रस्त है
हर दूसरी जिंदगी , जो
काम, क्रोध, लोभ, मोह से ग्रस्त है
कहीं व्यभिचार तो कहीं दुराचार
कहीं भ्रष्टाचार तो कहीं अनाचार
किसी न किसी’ चार’ का यहाँ बोलबाला है
जिंदगी सब कुछ सहती है
न जाने क्यूँ उसके मुँह पर ताला है I

यह जिंदगी भी कमाल की जिंदगी है!
ज़्यादातर किस्मत की मोहताज रहती है
मंजिल पाने की ललक न हो
तो भटकाने की ताक़ में रहती है
राह सीधी मिले तो किस्मत का नाम होता है
न मिले तो बेचारा सिक्का बदनाम होता हैI

यह जिंदगी भी कमाल की जिंदगी है!
मेहनत मजदूरी का ज्यादा मोल नहीं यहाँ
सच का मुखौटा पहन, झूठ का राज यहाँ
चीर हरण होते हैं सरे आम सडकों पर
चंद चांदी के सिक्के, और, बिके सैंकड़ों ईमान यहाँ I

विड़ंबना यह कि समय से पहले, जिंदगी
मौत को दावत नहीं दे सकती
जो देख रही है ,घटते हुए
‘ चलता है’ के नाम पर
सुख से सो भी नहीं सकती I

चलो इस कमाल कि जिंदगी को
बेमिसाल बना दें
दुल्हन के समान सजा कर
इसको संवार दें.
‘अपना भला ज़रूरी है’
यह सोंच बदल दें
नासूर बन गए ज़ख्मो पर
मरहम जो लगा दें
सच का आदर करें
‘इज्ज़त’ को मान दें
नफरत की आग जब भड़के तो
एक प्यार कि जोत जला दें I

फिर मौत भी जिंदगी को
हंसकर यूँ गले लगाएगी
आत्मा भी पुन:जन्म पाने को
ललकित हो जाएगी I

हर जिंदगी तब बनेगी
कमाल से बेमिसाल
हर जिंदगी की होगी फिर
दास्ताँ बेमिसालI