भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह कली / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

     यह कली
     झुटपुट अँधेरे में पली थी देहात की गली में;
     भोली-भली नगर के राज-पथ, दिपते
     प्रकाश में गयी छली।

     झरी नहीं, बही कहीं
     तो निकली नहीं,
     लहर कहाँ? भँवर फँसी।
     काल डँसी गयी मली-यह कली।

नयी दिल्ली (एम्बेसी रेस्तराँ में), 18 सितम्बर, 1958