भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गये होते / शहरयार
Kavita Kosh से
यह क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गये होते
इक पल भी अगर भूल से हम सो गये होते
ऐ शहर तेरा नाम-ओ-निशां भी नहीं होता
जो हादसे होने थे अगर हो गये होते
हर बार पलटते हुए घर को यही सोचा
ऐ काश किसी लम्बे सफ़र को गए होते
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अज़दाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गये होते
किस मुंह से कहें तुझसे समन्दर के हैं हक़दार
सेराब सराबों से भी हम हो गये होते