पता नहीं यह क्यों होता है
चलते-चलते अपनेपन का प्रकाश
एकाएक अँधेरा घुप हो जाता है
जिससे बहुत प्यार होता है
वह बोलते-बोलते
अकारण एक दिन चुप हो जाता है
न जाने कहाँ से आकर
विश्वास के पाँवों में
चुभ जाता है एक काँटा
समय की घाटी में दूर तक पसर जाता है
एक मनहूस सन्नाटा।
-25.3.2015