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यह घर दो भाई का घर है / राहुल शिवाय

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दो हिस्से में बँटा हुआ अब
यह घर दो भाई का घर है

मन में जो दीवार पड़ी है
बाँट रही वह घर का आँगन
दो हिस्से में जमा हो रहे
घर के सारे कपड़े, बरतन

माँ आकुल हो सोच रही है
हिस्सा उसका हुआ किधर है

बहुत स्नेह था, संस्कार था
कहकर यह दुनिया हँसती है
पर दुख को अपनाया किसने
यह दुनिया बेदिल बस्ती है

माँ किसको मुँह दिखलायेगी
चुप, बेवश, घर के अंदर है

माँ जिसने बाँटा है खुलकर
अपना हिस्सा, दूध-मिठाई
आज उसे रखने वाले के
हिस्से होगी खाट, रजाई
 
खुश इक बेटा है माँ लेकर
माँ के पास पड़ा जेवर है