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यह घुटन, यह मौन / रामगोपाल 'रुद्र'

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यह घुटन, यह मौन ऐसी साधना किसके लिए है?

महल के फानूस में मधुदीप जो जलता रहा है,
आप अपनी दीनता पर पिघलता-गलता जा रहा है
आवरण तक ही शलभ का भी जहाँ अभिसार होता
ज्योति-छल से जो तिमिर के सत्य को छलता रहा है!
पूछती है रात यह आराधना किसके लिए है?

भाग्य ने जिसको दिया है स्वर्णपिंजर में बसेरा,
चाँदनी से ही जहाँ रहता नयनपथ में अँधेरा;
चाँद भी अंगार होकर जहाँ जुड़ता-जुड़ाता,
और, कुहरा ही भरे रहता जहाँ, सब दिन, सबेरा!
पूछता है व्योम यह टक बाँधना किसके लिए है?