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यह जंगल है / कुमार रवींद्र
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यह जंगल है
अलग किसिम का
ऊँची-ऊँची मीनारों का
सुविधा इसमें रहने की है
अँधियारों में
और भटकने की भी
दिन-भर बाज़ारों में
चलता रहता
यहाँ रात-दिन
स्वाँग जमूरों-बटमारों का
इस जंगल में
बिना-बात के मोड़ कई हैं
भूलभुलैया- अंधी गलियाँ
नई-नई हैं
भेद न पाई
धूप कभी भी
व्यूह यहाँ की दीवारों का
सजी-हुई चिकनी
आकृतियों की यह बस्ती
तुमने देखी
इसकी नाचघरों की मस्ती
यहीं निराला
हाट नशीला
सुनो, देह के व्यापारों का