यह ज़रूरी नहीं है / पाब्लो नेरूदा / विनोद दास
यह ज़रूरी नहीं है
कि सीटी बजाई ही जाए
अकेले रहने के लिए
अन्धेरे में रहने के लिए
भीड़ के बाहर, खुले आसमान के नीचे
हम अपने अलग-अलग वजूदों को याद करते हैं
दोस्त वजूद, उघड़ा वजूद
सिर्फ़ वह वजूद जो जानता है कि
किस तरह नाख़ून बढ़ते हैं
जो जानता है कि किस तरह अपनी ख़ुद की ख़ामोशी बनाई जाती है
ख़ुद के कमज़ोर लफ्ज़ बनाए जाते हैं
लोक जीवन का नाम पेड्रो है जो रोशनी में दिखता है
जो काफ़ी विजय सूचक है लेकिन भीतर
उम्र और कपड़ों के नीचे
हमारा अभी भी कोई नाम नहीं है
हम काफ़ी अलहदा हैं
आँखें सिर्फ़ सोने के लिए ही बन्द नहीं होती
क़िब्ला इसलिए भी होती हैं कि वही आसमान बार-बार न दिखे
हम बहुत जल्दी थक जाते हैं
जैसे स्कूल में हमें बुलाने के लिए वे घण्टी बजा रहे हैं
हम लौटते हैं छिपे गुलों में
हड्डियों में,अधछिपी जड़ों में
अचानक हम वहाँ हो जाते हैं बेदाग़
भूलकर वजूद
सच्चा आदमी
अपनी ख़ास खाल के घेरे के भीतर
जीने और मरने के दो नुक्तों के बीच
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास