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यह जीवन बहुरूपिया / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
Kavita Kosh से
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
समय बदलता देख कर, कोयल है चुपचाप।
पतझड़ में बेकार है, कुहू- कुहू का जाप॥
हंसों को कहने लगे, आँख दिखाकर काग।
अब बहुमत का दौर है, छोड़ो सच के राग॥
अपमानित है आदमी, गोदी में है श्वान।
मानवता को दे रहे, हम कैसी पहचान॥
मोती कितना कीमती, दो कौड़ी की सीप।
पथ की माटी ने दिये, जगमग करते दीप॥
लेने देने का रहा, इस जग में व्यवहार।
कुछ देकर कुछ मिल सका, इतना ही है सार॥
इस दुनिया में हर तरफ, बरस रहा आनंद।
वह कैसे भीगे, सखे! जो ताले में बंद॥