यह ज्ञान तो नहीं है गौतम? / संजय तिवारी
सृष्टि का तिरस्कार
सपनो का व्यापार
और
जीवन, बिना आधार
यह ज्ञान तो नहीं है गौतम?
जिसने जना
सच बताना? क्या तुम उसके भी
हो सके?
जिसने चुना? गुना और सपनो को बुना
सच बताना? क्या तुम उसके भी हो सके?
जिसे तुमने आमंत्रित किया?
बुलाया? मना कर
किसी और ब्रह्माण्ड से
इस पृश्नि के
पावन भरतखण्ड में
उसके भी तो नहीं हो सके तुम?
तुम्हें क्या मिला गौतम?
सच बताना
न जीवन? न मृत्यु? न मोक्ष? न बैकुंठ
तुम्हें तो पावन बिरजा का
घाट भी नहीं दिखा होगा
बैकुंठ का वैभव तो बहुत दूर
गौतम
इस पलायन ने क्या दिया?
सृष्टि की अविरलता को
रोकने की अनुमति
किसने दी होगी तुम्हें
किसने कहा?
पलायन कोई मार्ग भी हो सकता है
पलायन? याकि
सृष्टि के अस्तित्व को
मिथ्या बताकर
खुद को
मुक्त प्रमाणित कर
सृजन को कर्महीन
अनर्जित
ऊर्जाहीन बना कर
कौन सा
समाधान दे सके तुम?
जीवन? जीवन और जगत से
पलायन के लिए
विधाता ने नहीं रची
यह एकपाद विभूति
यहाँ जीना और अनुभव करना
सार है इसका
मुक्ति का केवल एक ही मार्ग है
कर्म
जो भी इससे भागा
वह कभी मुक्त नहीं हो सका
इसीलिए
तुम अभी तक
रह गए अमुक्त।