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यह तन काहू काम न आयो / स्वामी सनातनदेव
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राग ईमन, धमार 15.9.1974
यह तन काहू काम न आयो।
भजे न प्राननाथ मनमोहन, कहा भयो कछु नाम कमायो॥
नर तन रतन मिल्यौ अमोल, सो कौड़ी बदले वृथा गँवायो।
भोग रोग में ही वय बीती, प्रेमयोग को परस न पायो॥1॥
ममता की माया में बूड़्यौ, समता में कब हूँ न समायो।
विषय वार्ता में झक मार्यौ, गोविंद को गुन नैंकु न गायो॥2॥
भरि-भरि उदर भोग भोगे, पै भोगि-भोगि अबहूँ न अघायो।
नाम सुधा को स्वाद न लीन्हों, अपनो नाम खूब छपवायो॥3॥
मान शान में प्रान लगाये, प्राननाथ को ध्यान न आयो।
मन न दियो मनमोहनकों हा! तन मन में ही अति गरवायो॥4॥
बीती वयस वृथा विषयन में, अबहूँ मूरख चेत न पायो।
सब तजि भज अबहूँ नँदनन्दन, काल बली सिर पै मँडरायो॥5॥