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यह दान का समय नहीं / अनुज लुगुन
Kavita Kosh से
यह दान का समय नहीं है
कबूतरों से उनके पेड़ विस्थापित हो चुके हैं
जड़ों में पानी नहीं कि वे सूख न सकें
बारिश अब मौसम की मार झेल रही है
और एक मज़दूरिन अपने स्त्री होने का गीत गा रही है
हाँ, अब यह दान का समय नहीं
दया निर्वासित है अपनी आत्मा से
धर्म हत्यारा है ईश्वर का
दयावान होना अब कोई मुहावरा नहीं
मसीहा होने के लिए भी हत्या ज़रूरी है
एक कबूतर के लिए एक पेड़ का दान ठीक नहीं
जड़ों को ज़मीन कौन दे सकता है दान में
बारिश को भला कौन दे सकता है बादल दान में
और वह मज़दूरिन जो गीत गा रही है
उसे तो अब तक ठीक से उसकी मज़दूरी भी नहीं मिली
माफ़ करें! सभी धर्म ग्रन्थ
अपने दान का उपदेश शीघ्र स्थगित करें।
(20/05/2018)