यह देश धर्म है / दीनानाथ सुमित्र
यह देश धर्म है, यह धर्म देश है
सौन्दर्य है असीमित, रसना अशेष है
गंगा का जल सुधा सम मन और प्राण है
सागर में रत्न सारे सागर महान है
वन सब सदा हरित हैं, सुषमा विशेष है
यह देश धर्म है, यह धर्म देश है
सौन्दर्य है असीमित, रसना अशेष है
जनतंत्र है विसद-सा, जन-मन महान है
नभ छू रहा है भारत, छत आसमान है
गण है कुबेर अपना, जन- जन गणेश है
यह देश धर्म है, यह धर्म देश है
सौन्दर्य है असीमित, रसना अशेष है
पुरवाइयाँ सुगंधित, सावन सजा हुआ
तन हैं सजे -धजे से, है मन सजा हुआ
सुर से बड़ा हुआ जो वह जन सुरेश है
यह देश धर्म है, यह धर्म देश है
सौन्दर्य है असीमित, रसना अशेष है
इतिहास बोलता है, सुनिये जरूर से
लिखना नया-नया है, लििखए न दूर से
सोने -से तन सभी के चाँदी का वेश है
यह देश धर्म है, यह धर्म देश है
सौन्दर्य है असीमित, रसना अशेष ह