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यह देश मेरा है / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मैं कहता हूं यह देश मेरा है
और मैंने सारी जगहों पर पांव भी नहीं रखे हैं अभी तक।
एक उड़ान के लिए तरसते हैं
बिना पंख के लोग
और दृश्य हैं जो आज यहां पर वे कल भी रहेंगे
उन्हें जिस तरह बदलना है
बदलते ही रहेंगे।
हमने जो भी महसूस किया
वे हमारे निजी क्षण थे
हमें कुछ जानना है तो उन तक चलकर जाना होगा।
जो कुछ सुंदरता के छोर में है स्थित
वो अपने आप दिख जाएगा
बस प्रयास भर करना है
आंखें अच्छी तरह से खोलनी हैं।