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यह दौर / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
अनिश्चितता के दौर मे
उन्होने गढ़ दिया है
एक कामयाब प्रतिमान
समय के पक्ष मे खड़ा बाज़ार
संविधान की जगह ले चुका है
और
भूख की जगह क़ीमत ने
अध्यादेश जारी किया है
अब कोई संकटग्रस्त नही
सभी बेरोक-टोक कही भी बिक सकते है
कहीं भी नंगे हो सकते हैं
प्रिये !
अब तुम बाइज़्ज़त
किसी पुरुष के साथ
शयनकक्ष मे अनावृत होकर
ख़ुश हो सकती हो
क्योंकि वे चाहते हैं
तुम्हारे जिस्म पर अपना अधिकार
देखना चाहते हैं
तुम्हारी आँखों मे
वासना का लहराता समन्दर
क्योंकि अब
तुम्हारा हक़
तुम्हारी स्वतन्त्रता
तुम्हारी आवश्यकताएँ नहीं
अनावृत जिस्म में गड़ी
क़ीमतखोर निगाहें तय करेंगीं