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यह धरती / बुद्धिनाथ मिश्र

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कितनी सुन्दर है यह धरती
हर ऋतु नव परिधान पहनकर
प्रकृति-नटी है नर्तन करती ।
कितनी सुन्दर है यह धरती ।

गाती मधुर गीत उत्सव के
सजती पुष्पों से, पर्णों से
प्राची और प्रतीची के तन
रचती चित्र विविध वर्णों से ।

पयस्विनी सरिता बन कोटिक
सन्तानों का पोषण करती ।
कितनी सुन्दर है यह धरती।

यह उल्लास अमृत पर्वों का
वेणु-गुंजरित यह वेतस-वन
कहाँ सुलभ ऐसा ऋतु-संगम
हिम का हास, जलधि का गर्जन ।

मलयानिल-सी मन्द-बह
श्रान्ति थके पथिकों की हरती ।
कितनी सुन्दर है यह धरती ।