भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह पीला उम्र में बड़ा है / तेजी ग्रोवर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह पीला उम्र में बड़ा है, मुझसे पहले शान्त नहीं होगा।
यह पीला अक़्स है पत्तियों की नीली शिराओं में। यह पीला
तुम्हारे भ्रम का समय है, पीले मोरों के आहार का। वह
पीली दिखती है खिड़की में काली ज़मीन पर पीली घास
की तरह चलती हुई। तितलियाँ नहीं जानतीं वे इतनी हैं
और पीली हैं सुबह की धूप में।



फिर वे पीले में जाने लगे जो हरे में थे, कुछ-कुछ अब
भी हरे में और अभी से पीले में जाने लगे थे। जैसे यह
सिर्फ़ हवा का होना हो जबकि सुबह की धूप में रात का
चन्द्रमा छिलके की तरह उजला हो आकाश में। मनुष्य
का रोना सुनते थक गए थे, सरकण्डे आवाज़ करने लगे
थे झील की किनार पर।

उनके वस्त्रों का रंग देखकर भी रंग का नाम याद नहीं
आता था।