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यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है / नील कमल
Kavita Kosh से
शाखों
सरक रहे हैं
पौरुषपूर्ण तनों के कंधों से
पीतवर्णी उत्तरीय
ढुलक रही है
अलसाई टहनियों के माथे से
हरी ओढ़नी
एक थके पेड़ के उघड़े सीने पर
फूली नसों-सी शाखाएँ
पढ़ी जा सकती हैं, अक्षरों-सी
ये फागुन के चढ़ते हुए दिन हैं
बौराए आम के सिर पर
उग रही है कलँगी
उदास नीम पर आ गए हैं
गुच्छों में फ़ूल,
उजाड़ पेड़ पर कूकती है
बेफ़िक्र एक कोयल
यह पेड़ों के कपड़े बदलने का
समय है,
एक बीतता हुआ सम्वत
अब जल उठेगा, धरती के कैलेन्डर पर
ढोलक की थाप पर
साल का पहला चैता गाकर
लौटेंगे लोग गाँव की तरफ़
अब बदल जाएगा मौसम,
तैयार होंगे पेड़
जेठ के उदास दिनों की
लम्बी दुपहरिया के लिए....
जिन्हें पेड़ कहते थे हम
वे तने हुए हाथ थे, धरती के ।