भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह बेकली ही हृदय की छाया है / अरुणा राय
Kavita Kosh से
कैसे बता सकती हूँ
कि क्या होता है हृदय
हालाँकि उसे दिखला देना चाहती हूँ
सामने वाले को
पर शब्द इसमें जरा सहायक नहीं होते
बस मेरी आंखों में उठे सवाल ही
बता सकते हैं कुछ
कि क्या तुम महसूस कर रहे हो
मेरा हृदय
कि मेरी यह बेकली
हृदय की छाया है यह
यह अकुलाहट
और क्या
क्या ...
नहीं वह सीने में नहीं
वजूद में धड़कता है पूरे
समा जाना चाहता है
एक दूजे में
त्वचा को विदीर्ण कर
पर असफल रहता है
और व्याकुल
कि यह असफलता ही हृदय का होना है
कि उसके बारे में
ठीक ठीक न बता पाने की मजबूरी ही
उसके होने का प्रमाण है ...